आचार्य श्रीराम शर्मा >> अन्त्याक्षरी पद्य-संग्रह अन्त्याक्षरी पद्य-संग्रहश्रीराम शर्मा आचार्य
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जीवन मूल्यों को स्थापित करने के लिए अन्त्याक्षरी पद्य-संग्रह
(ट-ण)
टिकेगा कहाँ तक, धरा पर अँधेरा।
नई रोशनी ले, सुबह आ रही है॥
टूटे सुजन मनाइये, जो टूटै सौ बार।
रहिमन फिर-फिर पोइए, टूटे मुक्ताहार॥
टेढ़ जानि शंका सबहि, है न असाँसी बात।
सरल भये दिन-रात जो, पावहि गारी लात॥
ठाड़ो द्वार न दे सकै, तुलसी जे नर नीच।
निन्दहिं बलि हरिचन्द्र को, का किय करन दधीच॥
डगमगाने लगे जबकि आधार ही,
फिर भवन की सुरक्षा सँभल न सके।
क्योंकि आधार ही भार करता वहन,
उसी से भवन का है उद्भव सखे॥
ढाँढ़स देखो मरजीव को, धाय जुरि पैठि पताल।
जीव अटक माने नहीं, ले गई निकरा लाल॥
ढिग बढ़ा उतरा नहीं, याहि अंदेसा मोहि।
सलिले धार नदिया बहै, पाँव कहाँ ठहराय॥
ढूँढ़त ढूँढ़त ढूंढ़िया, भया सो गूनागून।
ढूँढ़त ढूँढ़त न मिला, तब हरि कहा बेचून॥
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